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कक्षा 8 विज्ञान : अध्याय 1 फसल उत्पादन एवं प्रबंध

  • Writer: Solution Academy
    Solution Academy
  • Feb 10
  • 2 min read

कक्षा 8 विज्ञान : अध्याय 1 फसल उत्पादन एवं प्रबंध

 

कृषि (Krishi)

जब एक ही किस्म के पौधे किसी स्थान पर बड़े पैमाने पर उगाए जाते हैं, तो इसे फसल कहते हैं। उदाहरण के लिए, गेहूँ की फसल का अर्थ है कि खेत में उगाए जाने वाले सभी पौधे गेहूँ के हैं।

 

आप जानते ही हैं कि फसलें विभिन्न प्रकार की होती हैं, जैसे कि अन्न, सब्जियाँ एवं फल। 

 

जिस मौसम में यह पौधे उगाए जाते हैं उसके आधार पर हम फसलों का वर्गीकरण कर सकते हैं। भारत में मोटे तौर पर फसलों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है। वे इस प्रकार हैं

 

(i)            खरीफ़ फ़सलः वह फसल जिन्हें वर्षा ऋतु में बोया जाता है, खरीफ फसल कहलाती है। भारत में वर्षा ऋतु सामान्यतः जून से सितम्बर तक होती है। धान, मक्का, सोयाबीन, मूँगफली, कपास इत्यादि खरीफ़ फ़सलें हैं।

धान को बहुत अधिक पानी की आवश्यकता होती है। अतः इसे केवल वर्षा ऋतु में ही उगाते हैं।

(ii)           रबी फसलः शीत ऋतु (अक्टूबर से मार्च तक) में उगाई जाने वाली फ़सलें रबी फसलें कहलाती हैं। गेहूँ, चना, मटर, सरसों तथा अलसी रबी फसल के उदाहरण हैं।

 

इसके अलावा, कई स्थानों पर दालें और सब्जियाँ ग्रीष्म में उगाई जाती हैं।

 

आधारिक फसल पद्धतियाँ

फसल उगाने के लिए किसान को अनेक क्रियाकलाप सामयिक अवधि में करने पड़ते हैं। आप देखेंगे कि यह क्रियाकलाप उस प्रकार के हैं जिनका उपयोग माली अथवा आप सजावटी पौधे उगाने के लिए करते हैं। ये क्रियाकलाप अथवा कार्य कृषि पद्धतियाँ जो आगे दिए गए हैं-

 

(i) मिट्टी तैयार करना

 

(ii) बुआई

 

(iii) खाद एवं उवर्रक देना

 

(iv) सिंचाई

 

(v) खरपतवार से सुरक्षा

 

(vi) कटाई

 

(vii) भण्डारण

 

1. मिट्टी तैयार करना

 

·         फसल उगाने से पहले मिट्टी तैयार करना प्रथम चरण है। 

·         मिट्टी को पलटना तथा इसे पोला बनाना कृषि का अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है। इससे जड़ें भूमि में गहराई तक जा सकती हैं। 

·         पोली मिट्टी में गहराई में भैंसी जड़ें भी सरलता से श्वसन कर सकती हैं। 

·         पोली मिट्टी, मिट्टी में रहने वाले केंचुओं और सूक्ष्मजीवों की वृद्धि करने में सहायता करती है। यह जीव किसानों के मित्र हैं क्योंकि यह मिट्टी को और पलटकर पोला करते हैं तथा ह्यूमस बनाते हैं। 

·         ऊपरी परत के कुछ सेंटीमीटर की मिट्टी ही पौधे की वृद्धि में सहायक है, इसे उलटने-पलटने और पोला करने से पोषक पदार्थ ऊपर आ जाते हैं और पौधे इन पोषक पदार्थों का उपयोग कर सकते हैं। अतः मिट्टी को उलटना-पलटना एवं पोला करना फसल उगाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

·         मिट्टी को उलटने-पलटने एवं पोला करने की प्रक्रिया जुताई कहलाती है। इसे हल चला कर करते हैं। हल लकड़ी अथवा लोहे के बने होते हैं। यदि मिट्टी अत्यंत सूखी है तो जुताई से पहले इसे पानी देने की आवश्यकता भी पड़ सकती है। जुते हुए खेत में मिट्टी के बड़े-बड़े ढेले भी हो सकते हैं। इन्हें एक पाटल की सहायता से तोड़ना आवश्यक है। बुआई एवं सिंचाई के लिए खेत को समतल करना आवश्यक है। यह कार्य पाटल द्वारा किया जाता है।

·         कभी-कभी जुताई से पहले खाद दी जाती है। इससे जुताई के समय खाद मिट्टी में भली भांति मिल जाती है। बुआई से पहले खेत में पानी दिया जाता है।

 

कृषि औजार

 

अच्छी उपज के लिए बुआई से पहले मिट्टी को भुरभुरा करना आवश्यक है। यह कार्य अनेक औजारों से किया जाता है। हल, कुदाली एवं कल्टीवेटर इस कार्य में उपयोग किए जाने वाले प्रमुख औजार हैं।

हल: 

·         लकड़ी का बना होता है जिसे बैलों की जोड़ी अथवा अन्य पशुओं (घोड़े, ऊँट) की सहायता से खींचा जाता है। 

·         इसमें लोहे की मजबूत तिकोनी पत्ती होती है जिसे फाल कहते हैं। 

·         हल का मुख्य भाग लंबी लकड़ी का बना होता है जिसे हल-शैफ्ट कहते हैं। 

·         इसके एक सिरे पर हैंडल होता है तथा दूसरा सिरा जोत के डंडे से जुड़ा होता है जिसे बैलों की गरदन के ऊपर रखा जाता है। एक जोड़ी बैल एवं एक आदमी इसे सरलता से चला सकता हैं।

·         आजकल लोहे के हल तेजी से देसी लकड़ी के हल की जगह ले रहे हैं।

 

कुदाली: यह एक सरल औजार है जिसका उपयोग खरपतवार निकालने एवं मिट्टी को पोला करने के लिए किया जाता है। इसमें लकड़ी अथवा लोहे की छड़ होती है जिसके एक सिरे पर लोहे की चौड़ी और मुड़ी प्लेट लगी होती है जो ब्लेड की तरह कार्य करती है। इसका दूसरा सिरा पशुओं द्वारा खींचा जाता है।

 

कल्टीवेटर: आजकल जुताई ट्रैक्टर द्वारा संचालित कल्टीवेटर से की जाती है। कल्टीवेटर के उपयोग से श्रम एवं समय दोनों की बचत होती है।

 

2. बुआई

 

बुआई फसल उत्पादन का सबसे महत्वपूर्ण चरण है। बोने से पहले अच्छी गुणवत्ता वाले साफ़ एवं स्वस्थ बीजों का चयन किया जाता है। किसान अधिक उपज देने वाले बीजों को प्राथमिकता देता है।

 

बीजों का चयन

·         एक बीकर लेकर इसे पानी से आधा भरिए। इसमें एक मुठ्ठी गेहूँ के दाने डाल कर भली भाँति हिलाइए। कुछ समय प्रतीक्षा कीजिए।

·         क्षतिग्रस्त बीज खोखले हो जाते हैं और इस कारण हलके होते हैं। अतः यह जल पर तैरने लगते हैं। 

·         अच्छे और स्वस्थ बीजों को क्षतिग्रस्त बीजों से अलग करने की यह एक अच्छी विधि है।

 

बुआई से पहले बीज बोने के औजारों के बारे में जानना आवश्यक है 

 

परम्परागत औजार: परंपरागत रूप से बीजों की बुआई में इस्तेमाल किया जाने वाला औजार कीप के आकार का होता है। बीजों को कीप के अंदर डालने पर यह दो या तीन नुकीले सिरे वाले पाइपों से गुजरते हैं। ये सिरे मिट्टी को भेदकर बीज को स्थापित कर देते हैं।

सीड-ड्रिल: आजकल बुआई के लिए ट्रैक्टर द्वारा संचालित सीड-ड्रिल का उपयोग होता है। इसके द्वारा बीजों में समान दूरी एवं गहराई बनी रहती है। यह सुनिश्चित करता है कि बुआई के बाद बीज मिट्टी द्वारा ढक जाए। इससे बीजों को पक्षियों द्वारा खाए जाने से रोका जा सकता है। सीड-ड्रिल द्वारा बुआई करने से समय एवं श्रम दोनों की ही बचत होती है। 

धान जैसे कुछ पौधों के बीजों को पहले पौधशाला में उगाया जाता है। पौध तैयार हो जाने पर उन्हें हाथों द्वारा खेत में रोपित कर देते हैं। कुछ वनीय पौधे एवं पुष्पी पौधे भी पौधशाला में उगाए जाते हैं।

 

पौधों को अत्यधिक घने होने से रोकने के लिए बीजों के बीच उचित दूरी होना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इससे पौधों को सूर्य का प्रकाश, पोषक एवं जल पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होता है। अधिक घनेपन को रोकने के लिए कुछ पौधों को निकाल कर हटा दिया जाता है।

 

3. खाद एवं उर्वरक मिलाना

 

खाद एवं उर्वरक: वे पदार्थ जिन्हें मिट्टी में पोषक स्तर बनाए रखने के लिए मिलाया जाता है, उन्हें खाद एवं उर्वरक कहते हैं।

 

मिट्टी फ़सल को खनिज पदार्थ प्रदान करती है। यह पोषक पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक है। कुछ क्षेत्रों में किसान खेत में एक के बाद दूसरी फ़सल उगाता रहता है। खेत कभी भी खाली नहीं छोड़े जाते। फ़सलों के लगातार उगाने से मिट्टी में कुछ पोषकों की कमी हो जाती है। इस क्षति को पूरा करने हेतु किसान खेतों में खाद देते हैं। यह प्रक्रम 'खाद देना' कहलाता है। अपर्याप्त खाद देने से पौधे कमजोर हो जाते हैं।

 

खाद एक कार्बनिक (जैविक) पदार्थ है जो कि पौधों या जंतु अपशिष्ट से प्राप्त होती है। किसान पादप एवं जंतु अपशिष्टों को एक गढ्ढे में डालते जाते हैं तथा इसका अपघटन होने के लिए खुले में छोड़ देते हैं। अपघटन कुछ सूक्ष्म जीवों द्वारा होता है। अपघटित पदार्थ खाद के रूप में उपयोग किया जाता है। 

 

उर्वरक रासायनिक पदार्थ हैं जो विशेष पोषकों से समृद्ध होते हैं। उर्वरक का उत्पादन फैक्ट्रियों में किया जाता है। उर्वरक के कुछ उदाहरण हैं यूरिया, अमोनियम सल्फेट, सुपर फॉस्फेट, पोटाश, NPK (नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम)।

 

इनके उपयोग से किसानों को गेहूँ, धान तथा मक्का जैसी फसलों की अच्छी उपज प्राप्त करने में सहायता मिली है। परन्तु उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी की उर्वरता में कमी आई है। यह जल प्रदूषण का भी स्रोत बन गए हैं। अतः मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए हमें उर्वरकों के स्थान पर जैविक खाद का उपयोग करना चाहिए अथवा दो फसलों के बीच में खेत को कुछ समय के लिए बिना कुछ उगाए छोड़ देना चाहिए।

 

खाद के उपयोग से मिट्टी के गठन एवं जल अवशोषण क्षमता में भी वृद्धि होती है। इससे मिट्टी में सभी पोषकों की प्रतिपूर्ति हो जाती है।

 

मिट्टी में पोषकों की प्रतिपूर्ति का अन्य तरीका है फसल चक्रण। यह एक फसल के बाद खेत में दूसरे किस्म की फसल एकांतर क्रम में उगा कर किया जा सकता है। पहले, उत्तर भारत में किसान फलीदार चारा एक ऋतु में उगाते थे तथा गेहूँ दूसरी ऋतु में। इससे मिट्टी में नाइट्रोजन का पुनः पूरण होता रहता है। किसानों को इस पद्धति को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया है।

 

पिछली कक्षाओं में आप राइजोबियम वैक्टीरिया के विषय में पढ़ चुके हैं। यह फलीदार (लैग्यूमिनस) पौधों की जड़ों की ग्रंथिकाओं में पाए जाते हैं और वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करते हैं।

 

सारणी उर्वरक एवं खाद के बीच अंतर

क्र. सं.

उर्वरक

खाद

1.

उर्वरक एक मानव निर्मित लवण है।

खाद एक प्राकृतिक पदार्थ है जो गोबर एवं पौधों के अवशेष के विघटन से प्राप्त होता है।

2.

उर्वरक का उत्पादन फैक्ट्रियों में होता है।

खाद खेतों में बनाई जा सकती है।

3.

उर्वरक से मिट्टी को ह्यूमस प्राप्त नहीं होती।

खाद से मिट्टी को ह्यूमस प्रचुर मात्रा में प्राप्त होती है।

4.

उर्वरक में पादप पोषक, जैसे कि नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटैशियम प्रचुरता में होते हैं।

खाद में पादप पोषक तुलनात्मक रूप से कम होते हैं।

 

 

खाद के लाभ: जैविक खाद उर्वरक की अपेक्षा अधिक अच्छी मानी जाती है। इसका मुख्य कारण है-

·         इससे मिट्टी की जलधारण क्षमता में वृद्धि होती है।

·         इससे मिट्टी भुरभुरी एवं सरंध्र हो जाती है जिसके कारण गैस विनिमय सरलता से होता है।

·         इससे मित्र जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि हो जाती है। 

·         इस जैविक खाद से मिट्टी का गठन सुधर जाता है।

 

4. सिंचाई

 

पौधों में लगभग 90% जल होता है। जल आवश्यक है क्योंकि बीजों का अंकुरण शुष्क स्थिति में नहीं हो सकता। स्वस्थ फसल वृद्धि के लिए मिट्टी की नमी को बनाए रखने के लिए खेत में नियमित रूप से जल देना आवश्यक है।

 

निश्चित अंतराल पर खेत में जल देना सिंचाई कहलाता है। सिंचाई का समय एवं बारम्बारता फसलों, मिट्टी एवं ऋतु में भिन्न होता है। गर्मी में पानी देने की बारम्बारता अपेक्षाकृत अधिक होती है। 

 

सिंचाई के स्रोत: कुएँ, जलकूप, तालाब/झील, नदियाँ, बाँध एवं नहर इत्यादि जल के स्रोत हैं।

 

सिंचाई के पारंपरिक तरीके

कुओं, झीलों एवं नहरों में उपलब्ध जल को निकाल कर खेतों तक पहुँचाने के तरीके विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न हैं।

 

मवेशी अथवा मजदूर इन विधियों में इस्तेमाल किए जाते हैं। अतः यह सस्ते हैं, परन्तु यह कम दक्ष हैं। विभिन्न पारंपरिक तरीके निम्न हैं:

(1) मोट (घिरनी), (ii) चेन पम्प, (iii) ढेकली, (iv) रहट (उत्तोलक तंत्र)

 

जल को ऊपर खींचने के लिए सामान्यतः पम्प का उपयोग किया जाता है। पम्प चलाने के लिए डीज़ल, बायोगैस, विद्युत एवं सौर ऊर्जा का उपयोग किया जाता है।

 

सिंचाई की आधुनिक विधियाँ

 

सिंचाई की आधुनिक विधियों द्वारा हम जल का उपयोग मितव्ययता से कर सकते हैं। मुख्य विधियाँ निम्न हैं:

 

(i) छिड़‌काव तंत्र (Sprinkler system): 

इस विधि का उपयोग असमतल भूमि के लिए किया जाता है जहाँ पर जल कम मात्रा में उपलब्ध है। 

 

ऊर्ध्व पाइपों (नलों) के ऊपरी सिरों पर घूमने वाले नोजल लगे होते हैं। यह पाइप निश्चित दूरी पर मुख्य पाइप से जुड़े होते हैं। जब पम्प की सहायता से जल मुख्य पाइप में भेजा जाता है तो वह घूमते हुए नोज़ल से बाहर निकलता है। इसका छिड़काव पौधों पर इस प्रकार होता है जैसे वर्षा हो रही हो। छिड़काव लॉन, कॉफी की खेती एवं कई अन्य फसलों के लिए अत्यंत उपयोगी है 

 

(ii) ड्रिप तंत्र (Drip system): इस विधि में जल बूंद-बूंद करके सीधे पौधों की जड़ों में गिरता है। अतः इसे ड्रिप-तंत्र कहते हैं। फलदार पौधों, बगीचों एवं वृक्षों को पानी देने का यह सर्वोत्तम तरीका है। इससे पौधे को बूंद-बूंद करके जल प्राप्त होता है। इस विधि में जल बिलकुल व्यर्थ नहीं होता। अतः यह जल की कमी वाले क्षेत्रों के लिए एक वरदान है।

 

 

5. खरपतवार से सुरक्षा

 

खेत में कई अन्य अवांछित पौधे प्राकृतिक रूप से फसल के साथ उग जाते हैं। इन अवांछित पौधों को खरपतवार कहते हैं।

 

खरपतवार हटाने को निराई कहते हैं। निराई आवश्यक है क्योंकि खरपतवार जल पोषक, जगह और प्रकाश की स्पर्धा कर फसल की वृद्धि पर प्रभाव डालते हैं। कुछ खरपतवार कटाई में भी बाधा डालते हैं तथा मनुष्य एवं पशुओं के लिए विषैले हो सकते हैं।

 

खरपतवार को हटाने एवं उनकी वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए किसान विभिन्न तरीके अपनाता है। फसल उगाने से पहले खेत जोतने से खरपतवार उखाड़ने एवं हटाने में सहायता मिलती है। इससे खरपतवार पौधे सूख कर मर जाते हैं और मिट्टी में मिल जाते हैं। खरपतवार हटाने का सर्वोतम समय उनमें पुष्पण एवं बीज बनने से पहले का होता है। खरपतवार पौधों को हाथ से जड़ सहित उखाड़ कर अथवा भूमि के निकट से काट कर समय-समय पर हटा दिया जाता है। यह कार्य खुरपी या हैरो की सहायता से किया जाता है।

 

रसायनों के उपयोग से भी खरपतवार नियंत्रण किया जाता है, जिन्हें खरपतवारनाशी कहते हैं, जैसे, 2, 4-D । खेतों में इनका छिड़काव किया जाता है जिससे खरपतवार पौधे मर जाते हैं परन्तु फसल को कोई हानि नहीं होती। खरपतवारनाशी को जल में आवश्यकतानुसार मिलाकर स्प्रेयर (फुहारा) की सहायता से खेत में छिड़काव करते हैं।

 

खरपतवारनाशी के छिड़काव से किसान के स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ सकता है। अतः उन्हें इन रसायनों का प्रयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिए। छिड़काव करते समय उन्हें अपना मुँह एवं नाक कपड़े से ढक लेनी चाहिए।

 

6. कटाई

फसल की कटाई एक महत्वपूर्ण कार्य है। फसल पक जाने के बाद उसे काटना कटाई कहलाता है। कटाई के दौरान या तो पौधों को खींच कर उखाड़ लेते हैं अथवा उसे धरातल के पास से काट लेते हैं। एक अनाज फसल को पकने में लगभग 3 से 4 महीने का समय लगता है। हमारे देश में दराँती की सहायता से हाथ द्वारा कटाई की जाती है अथवा एक मशीन का उपयोग किया जाता है जिसे हार्वेस्टर कहते हैं। 

काटी गई फसल से बीजों/दानों को भूसे से अलग करना होता है। इसे थ्रेशिंग कहते हैं। यह कार्य कॉम्बाइन मशीन द्वारा किया जाता है।

छोटे खेत वाले किसान अनाज के दानों को फटक कर (विनोइंग) अलग करते हैं। 

 

कटाई पर्व

तीन-चार महीनों के कठोर परिश्रम के बाद कटाई का समय आता है। स्वर्णिम दानों से भरी खड़ी फसल किसानों के हृदय में उल्लास एवं अच्छे समय का भाव संचारित करती है। यह समय थोड़ा आराम करने एवं खुशी मनाने का है क्योंकि पिछली ऋतु के प्रयत्न का फल मिलता है। इसीलिए भारत के सभी भागों में कटाई का समय हर्षोल्लास एवं खुशी का होता है। पुरुष एवं महिलाएँ सभी मिलकर इस पर्व को मनाते हैं। कटाई ऋतु के साथ कुछ विशेष पर्व जैसे पोंगल, वैसाखी, होली, दौवाली, नबान्या एवं बिहू जुड़े हुए हैं।

 

7. भण्डारण

 

उत्पाद का भण्डारण एक महत्वपूर्ण कार्य है। यदि फ़सल के दानों को अधिक समय तक रखना हो तो उन्हें नमी, कीट, चूहों एवं सूक्ष्मजीवों से सुरक्षित रखना होगा। ताज़ा फ़सल में नमी की मात्रा अधिक होती है। यदि फ़सल के दानों (बीजों) को सुखाए बिना भण्डारित किया गया तो उनके खराब होने अथवा जीवों द्वारा आक्रमण से वे अंकुरण के लिए अनुपयोगी हो जाते हैं। अतः भण्डारण से पहले दानों (बीजों) को धूप में सुखाना आवश्यक है जिससे उनकी नमी में कमी आ जाए। इससे उनकी कीट पीड़कों, जीवाणु एवं कवक से सुरक्षा हो जाती है। किसान अपनी फसल उत्पाद का भण्डारण जूट के बोरों, धातु के बड़े पात्र (bins) में करते हैं। परन्तु बीजों का बड़े पैमाने पर भण्डारण साइलो और भण्डार गृहों में किया जाता है जिससे उनको पीड़को जैसे कि चूहे एवं कीटों से सुरक्षित रखा जा सके।

 

नीम की सूखी पत्तियाँ घरों में अनाज के भण्डारण में उपयोग की जाती हैं। बड़े भण्डार गृहों में अनाज को पीड़कों एवं सूक्ष्मजीवों से सुरक्षित रखने के लिए रासायनिक उपचार भी किया जाता है।

 

जंतुओं से भोजन

 

समुद्र के तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोग मछली का मुख्य आहार के रूप में उपयोग करते हैं। 

घरों में अथवा फार्म पर पालने वाले पालतू पशुओं को उचित भोजन, आवास एवं देखभाल की आवश्यकता होती है। जब यह बड़े पैमाने पर किया जाता है तो इसे पशुपालन कहते हैं।

मछली स्वास्थ्य के लिए अच्छा आहार है। हमें मछली से कॉड लीवर तेल मिलता है जिसमें विटामिन-D अधिक मात्रा में पाया जाता है।

अभ्यास

 


 

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